राम भजन
त्रिभुवन विदित अवध जेकर नौआ लिरिक्स हिंदी में (Tribhuvan Vidit Awadh Jekar Nauaa Lyrics In Hindi)
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे ………………………..
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे ………………………..
जहाँ ब्रम्हा राम शिशु गलियन में खेले
अंजुरी में भरी भरी धूल सिर मेले
जहाँ ब्रम्हा राम शिशु गलियन में खेले
अंजुरी में भरी भरी धूल सिर मेले
जहाँ नक बहु चले जहाँ नक बहु चले
कली ताप दउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे ………………………..
दशरथ पिता जहा कौशल्या जी मईया
दशरथ पिता जहा कौशल्या जी मईया
भरत लखन रिपु हल भन भैया
दशरथ पिता जहा कौशल्या जी मईया
राम नाम रटे जहाँ राम नाम रटे जहाँ
कोयल और कौआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे ………………………..
सीता महारानी जहा रामचंद्र राजा
सीता महारानी जहा रामचंद्र राजा
हनुमान परी कर वैष्णव समाजा
रामभद्राचार्य के, रामभद्राचार्य के,
हुए ठीक ठउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे ………………………..
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
बड़ा निक लागे ………………………..
त्रिभुवन विदित अवध जेकर नौआ लिरिक्स अंग्रेजी में (Tribhuvan Vidit Awadh Jekar Nauaa Lyrics In English)
Tribhuvan vidit avadh jaikar nauaa
Tribhuvan vidit avadh jaikar nauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage ………………………..
Tribhuvan vidit avadh jaikar nauaa
Tribhuvan vidit avadh jaikar nauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage ………………………..
Jahaan bramhaa raam shishu galiyan men khele
Amjurii men bharii bharii dhuul sir mele
Jahaan bramhaa raam shishu galiyan men khele
Amjurii men bharii bharii dhuul sir mele
Jahaan nak bahu chale jahaan nak bahu chale
Kalii taap dauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage ………………………..
Dasharath pitaa jahaa kowshalyaa jii maiiyaa
Dasharath pitaa jahaa kowshalyaa jii maiiyaa
Bharat lakhan ripu hal bhan bhaiyaa
Dasharath pitaa jahaa kowshalyaa jii maiiyaa
Raam naam raṭe jahaan raam naam raṭe jahaan
Koyal owr kowaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage ………………………..
Seetaa mahaaraanii jahaa raamachandr raajaa
Seetaa mahaaraanii jahaa raamachandr raajaa
Hanumaan pari kar vaishṇav samaajaa
Rambhadracharya ke, Rambhadracharya ke,
Hue ṭheek ṭhauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav jii Ke gauaa
Badaa nik laage ………………………..
Tribhuvan vidit avadh jaikar nauaa
Badaa nik laage raaghav ji Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav ji Ke gauaa
Badaa nik laage raaghav ji Ke gauaa
Badaa nik laage ………………………..
भावार्थ :-
यह भजन “त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ” प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अवध (अयोध्या) की महिमा और सौंदर्य का अद्भुत, भावनात्मक और भक्ति से भरा हुआ वर्णन करता है। इसमें भगवान श्रीराम की बाल लीलाओं से लेकर उनकी कुल-परंपरा, भक्तों और दिव्य चरित्र का भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
नीचे इसका पद्यनुसार भावार्थ (अर्थ) प्रस्तुत है:
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
भावार्थ:
जिस अयोध्या नगरी का नाम तीनों लोकों (त्रिभुवन) में विख्यात है,
हे श्री राघव जी! आपकी वह अयोध्या नगरी (गउआ) बहुत ही सुंदर और पावन प्रतीत होती है।
यह स्थान केवल एक नगरी नहीं, बल्कि दिव्यता से परिपूर्ण एक तीर्थ है।
जहाँ ब्रह्मा राम शिशु गलियन में खेले,
अंजुरी में भरी-भरी धूल सिर मेले,
जहाँ नक बहु चले, कली ताप दउआ
भावार्थ:
यह वही अयोध्या है जहाँ भगवान श्रीराम बाल रूप में गलियों में खेलते थे,
अपने हाथों की अंजुली में धूल भरकर उसे अपने सिर पर लगाते थे।
जहाँ उनकी बाल लीला में बहती नाक तक भी पवित्र लगती थी।
उनकी मासूमता से कलियुग के ताप और पापों का नाश होता था।
दशरथ पिता जहाँ, कौशल्या जी मईया,
भरत, लखन, रिपुहल भन भैया,
राम नाम रटे जहाँ, कोयल और कौआ
भावार्थ:
जहाँ स्वयं राजा दशरथ उनके पिता और कौशल्या माता थीं,
जहाँ भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न जैसे आदर्श भ्राता थे।
जहाँ पक्षी – कोयल और कौवा तक राम नाम का जाप करते हैं।
वह भूमि कितनी धन्य और सुंदर होगी!
सीता महारानी जहाँ, रामचंद्र राजा,
हनुमान परी कर वैष्णव समाजा,
रामभद्राचार्य के हुए ठीक ठउआ
भावार्थ:
जहाँ श्रीराम राजा हैं और माता सीता रानी,
जहाँ भगवान हनुमान स्वयं सेवा में तत्पर रहते हैं और वहाँ वैष्णवों की पावन सभा सजती है।
यह वही स्थान है जहाँ महान संत रामभद्राचार्य जी जैसे भक्त भी जीवन की दिशा को रामभक्ति में स्थिर कर पाए।
उनका भी जीवन यहाँ आकर सुधर गया।
पुनः समापन:
त्रिभुवन विदित अवध जैकर नउआ
बड़ा निक लागे राघव जी के गउआ
भावार्थ:
अंत में फिर यही भाव प्रकट होता है कि तीनों लोकों में प्रसिद्ध अयोध्या नगरी,
भगवान श्रीराम की वह प्रिय भूमि, बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण और दिव्य प्रतीत होती है।